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देवता: सोमः ऋषि: कण्वो घौरः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

मा नः॑ सोमपरि॒बाधो॒ मारा॑तयो जुहुरन्त । आ न॑ इन्दो॒ वाजे॑ भज ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā naḥ somaparibādho mārātayo juhuranta | ā na indo vāje bhaja ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा । नः॒ । सो॒म॒प॒रि॒बाधः॑ । मा । अरा॑तयः । जु॒हु॒र॒न्त॒ । आ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । वाजे॑ । भ॒ज॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:43» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह किसका निवारण करे, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्दो) सुशिक्षा से आर्द्र करनेवाले सभाध्यक्ष (नः) हम लोगों को (सोमपरिबाधः) जो उत्तम पदार्थों को सब प्रकार दूर करनेवाले विरोधी पुरुष हैं वे हम पर (मा जुहुरन्त) प्रबल न होवें और (अरातयः) जो दान आदि धर्मरहित शत्रु हठ करनेवाले हैं वे (नः) हम लोगों को इन शत्रुओं को (वाजे) युद्ध में पराजय करने को (आभज) अच्छे प्रकार युक्त कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। मनुष्यों को अत्यन्त उत्तम बल के साहित्य से परमेश्वर वा सभासेनाध्यक्ष के आश्रय वा अपने पुरुषार्थ युक्त युद्ध में सब शत्रुओं को जीतकर न्याययुक्त होके राज्य का पालन करना चाहिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(मा) निषेधार्थे (नः) अस्मान् (सोमपरिबाधः) ये सोमानुत्तमान् पदार्थान् परितः सर्वतो बाधन्ते ते (मा) निषेधार्थे (अरातयः) शत्रवः (जुहुरन्त) प्रसह्यकारिणो भवन्तु। अत्र हृ प्रसह्यकरणे व्यत्ययेन आत्मनेपदं लङ्यडभावो बहुलं छन्दसि इत्युत्वं वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति अदभ्यस्तात् इति प्राप्तेऽद्भावो न भवति (आ) अभितः (नः) अस्मान् (इन्दो) आर्द्रीकारक सभाध्यक्ष (वाजे) युद्धे (भज) सेवस्व ॥८॥

अन्वय:

पुनः स किन्निवारयेदित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्दो सभाद्यध्यक्ष ! नोऽस्मान् सोमपरिबाधो विरोधिनो मा जुहुरन्त ये नोऽस्माकमरातयः सन्ति ताँस्त्वं कदाचिन्माऽऽभज ॥८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः परमोत्तमबलसाहित्येन युद्धेन च सर्वान् दुष्टाञ्च्छत्रून् विजित्य सत्यन्याययुक्तं राज्यं कार्य्यमिति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी अत्यंत बलयुक्त बनून परमेश्वर व सभासेनाध्यक्षाच्या आश्रयाने आणि आपल्या पुरुषार्थाने युद्धात सर्व शत्रूंना जिंकून न्यायाने राज्याचे पालन करावे. ॥ ८ ॥